भवानी सिंह की यात्रा – गाँव से राष्ट्र निर्माण तक

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साधारण शुरुआत

"किसान के बेटे से समाजसेवक बनने तक का सफर"
भवानी सिंह जी का जन्म 18 जुलाई 1980 को हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गाँव बोसवाल में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उनके पिता श्री विजय सिंह खेती-किसानी से जुड़े रहे और माता श्रीमती कमला देवी गृहिणी हैं। बाल्यकाल में ही उन्होंने पारिवारिक सादगी, मेहनत और सेवा भाव का अनुभव किया। उनके दादा श्री जोध सिंह भारतीय सेना में सूबेदार रहे, जिन्होंने देशभक्ति, अनुशासन और निःस्वार्थ सेवा का आदर्श प्रस्तुत किया। यही संस्कार भवानी सिंह के जीवन में गहराई से बसे और आगे चलकर समाजसेवा के मूल स्तंभ बने। एक साधारण परिवार से निकलकर बड़े सपनों की ओर बढ़ने की यह शुरुआत थी।

संघर्ष जीवन का

गाँव की मिट्टी से सीखे मूल्य, संघर्ष से जिम्मेदारी और कॉलेज में बने विचारशील नेता
प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही सरकारी स्कूल में प्राप्त की, जहाँ उन्होंने ज़मीनी हकीकत को समझा। पढ़ाई में तेज़ होने के साथ-साथ वह सामाजिक मुद्दों पर भी सजग रहते थे। लेकिन पिताजी के साथ हुई दुर्घटना में उच्च स्तरीय पढाई करने का सपना भी अधूरा रह गया | दिन में खेत संभालना और रात को अस्पताल में पिता की सेवा करना, दोनों जिम्मेदारियाँ उन्होंने पूरे समर्पण से निभाईं। जब पिता को होश आया तो उन्हें पता चला कि खेती भी उनके बेटे ने अच्छी तरह संभाल ली है। यह उनके भीतर के संस्कार और हर काम को पूरे दिल से करने की आदत का परिणाम था। शिक्षा और संघर्ष ने उन्हें सिर्फ ज्ञान नहीं दिया, बल्कि एक दिशा दी – समाज की भलाई के लिए कुछ बड़ा करने की।

जागृत सामाजिक चेतना

युवाओं की पीड़ा को समझा और बदलाव का बीड़ा उठाया
छात्र जीवन में उन्होंने देखा कि किस प्रकार नशा युवाओं को खोखला कर रहा है। उन्होंने इस समस्या को केवल एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण में बाधा के रूप में देखा। इनको खुद भी कभी किसी तरह का नशा नहीं किया | इसी सोच ने उन्हें प्रेरित किया कि बदलाव लाने के लिए केवल बोलना नहीं, बल्कि मैदान में उतरकर काम करना होगा। धीरे-धीरे उन्होंने पेस्ट कंट्रोल का काम शुरू किया, लेकिन धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के कारण यह व्यवसाय उन्हें सही नहीं लगा क्योंकि इसमें जीवों की हत्या होती थी। उन्होंने इसे छोड़ने का निर्णय लिया और समाज सेवा की दिशा में आगे बढ़े। उन्होंने छोटे स्तर पर मित्रों, साथियों और गांव वालों के बीच जागरूकता शुरू की। यही से उनके अंदर एक आंदोलनकारी सोच ने जन्म लिया — एक ऐसा नेता जो समाज को दिशा देने निकला।

जनता का भरोसा, जनसेवा का आगाज़

राजनीति को साधन नहीं, सेवा का मंच बनाया
साल 2010 में उन्होंने जिला परिषद का चुनाव लड़ा और जनता ने भवानी सिंह पर भरोसा जताया और उन्हें फतेहाबाद से जिला पार्षद चुना। । यह चुनाव उन्होंने बिना पैसे और बिना नशे के लड़ने का संकल्प लिया। जब कुछ साथियों ने शराब पिलाकर वोट माँगने का दबाव बनाया तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा – “मुझे चुनाव हारना मंजूर है, पर मैं शराब पिलाकर वोट नहीं लूंगा।” यह उनके समाज के प्रति ईमानदारी और नशे के खिलाफ मजबूत रुख का प्रतीक था। उनका पहला कदम था, लेकिन उनकी सोच पर सेवा की छाया पहले से थी। उन्होंने पद को सत्ता नहीं, सेवा का माध्यम बनाया। गाँवों में जाकर लोगों की समस्याएँ सुनीं, युवाओं से संवाद किया और नशा मुक्ति को जन-आंदोलन का रूप देने की तैयारी शुरू की। उनका विश्वास था कि बदलाव सिर्फ भाषणों से नहीं, ज़मीनी स्तर पर काम करके आता है।

महाशक्ति ट्रस्ट की स्थापना

सेवा को संस्थागत रूप देकर एक आंदोलन की शुरुआत
वर्ष 2025 में उन्होंने महाशक्ति चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की, जिसका उद्देश्य नशा मुक्ति नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, युवा विकास, पर्यावरण और भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन खड़ा करना है। इस मुहिम में आज हजारों लोग जुड़ चुके हैं | इस मुहीम के दौरान चर्चा में आई बात की चाय भी एक नशा है तो उन्होंने चाय को भी पूरी जिन्दगी ना पीने का संकल्प लिया | ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने यह साबित किया कि सोच को जब संगठन मिलता है, तब समाज में असली परिवर्तन आता है। उनका नेतृत्व ट्रस्ट को एक जनांदोलन में बदलने लगा। उन्हें विश्वास है कि आने वाले समय में लाखों-करोड़ों लोग “मेरा सपना – नशा मुक्त हो भारत अपना” के संकल्प से जुड़ेंगे।

गाँव-गाँव जन अभियान

हर गाँव, हर गली में जागरूकता की एक लहर
ट्रस्ट के माध्यम से गाँव-गाँव नशा मुक्ति अभियान चलाए जा रहे हैं। नि:शुल्क मेडिकल कैंप और रक्तदान शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। युवाओं को खेलकूद और शिक्षा के माध्यम से नशे से दूर रखने के प्रयास किए जा रहे हैं तथा पौधारोपण एवं पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। महाशक्ति ट्रस्ट के माध्यम से भवानी सिंह ने हर गाँव में 11 से 21 सदस्यों की नशा विरोधी टीमों का गठन कराया। इन टीमों का कार्य था – निगरानी, संवाद और जागरूकता। उन्होंने ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित कर, उन्हें बदलाव का वाहक बनाया। सैकड़ों जनसभाएँ और घर-घर संपर्क अभियान चलाए गए। उनका मानना है कि जब समाज जागता है, तभी कोई बुराई खत्म होती है। यही सोच इस अभियान का मूल थी।

स्वास्थ्य और सेवा के प्रेरक

जनसेवा वहाँ, जहाँ ज़रूरत सबसे अधिक हो
भवानी सिंह ने सेवा के दायरे को सिर्फ नशा मुक्ति तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने नि:शुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर, रक्तदान शिविर, नेत्र जांच शिविर, मासिक स्वच्छता अभियान और कोरोना काल में राहत सामग्री वितरण जैसे कई कार्य किए। भवानी सिंह जी का मानना है कि केवल शरीर ही नहीं बल्कि मन और समाज को भी स्वस्थ रखना जरूरी है। इसलिए उन्होंने नशा मुक्ति मेडिकल शिविर, रक्तदान शिविर और स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों पर विशेष जोर दिया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा की कमी को समझा और हर सप्ताह अलग-अलग गाँवों में स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाईं। सेवा का यह रूप उनके कार्यों की पहचान बन गया।

खेल और युवा विकास के प्रेरक

खेलों से युवाओं को जोड़ा, नशे से दूर किया
उनका मानना है कि खेल युवाओं को नशे से दूर रखते हैं और उनमें अनुशासन, आत्मविश्वास और ऊर्जा भरते हैं। इसलिए ट्रस्ट के माध्यम से खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कर युवाओं को नई दिशा देने का कार्य किया जा रहा है। खेल उनके लिए केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि नशे से लड़ने का एक हथियार बन गया।

नशा विरोधी क्रांतिकारी कदम

कठोर निर्णयों से डर नहीं, बदलाव का विश्वास
उनके नेतृत्व में हर गाँव में 11 से 21 सदस्यीय निगरानी टीमें बनाई जा रही हैं जो नशे के खिलाफ सक्रिय रहेंगी। नशा बेचने वालों पर पाँच लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव भी रखा गया है। उनका नारा है – “नशा नहीं, शिक्षा चाहिए।”

सम्मान और भविष्य की दिशा

सम्मान सेवा का फल नहीं, बल्कि समाज की स्वीकृति है
नशा मुक्त भारत अभियान के विशेष पखवाड़ा समापन अवसर पर उन्हें और उनकी टीम को सम्मानित किया गया। हजारों लोगों को जोड़कर जागरूकता सेमिनार और जनसभाएँ आयोजित करना उनके प्रयासों का हिस्सा रहा है। उनका अगला लक्ष्य है – इस मुहिम को राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन बनाना। वे चाहते हैं कि हर राज्य, हर गाँव और हर नागरिक इस अभियान से जुड़े। उनका जीवन केवल अतीत की उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण भी है।

या तो नशा छोड़ो, या हमारा क्षेत्र छोड़ो!" — एक क्रांति की शुरुआत

भवानी सिंह जी के नेतृत्व में महाशक्ति चैरिटेबल ट्रस्ट ने समस्त सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर फतेहाबाद जिले से नशे के खिलाफ एक निर्णायक यात्रा एवं अभियान की शुरुआत की है। यह सिर्फ एक पदयात्रा नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतना की मशाल है — उन सभी के लिए एक सीधी चेतावनी जो नशा तस्करी और समाज को बर्बाद करने वाले धंधों से जुड़े हुए हैं।

या तो नशा बेचना बंद करो, या हमारे क्षेत्र से बाहर निकल जाओ!

यह संदेश केवल शब्द नहीं, एक सामाजिक अल्टीमेटम है। अब चुप्पी नहीं, कार्रवाई होगी। समाज अब खड़ा है – अपने भविष्य, अपने बच्चों और अपने गाँवों की रक्षा के लिए।
जीवन का लक्ष्य

गाँव से उठी आवाज़, अब राष्ट्र की पुकार बन चुकी है

भवानी सिंह जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि जब सोच में सेवा और कर्म में ईमानदारी हो तो परिवर्तन निश्चित होता है। वे नेतृत्व नहीं, सेवा को प्राथमिकता देते हैं। उनका स्पष्ट संदेश है –सेवा नहीं रुकेगी जब तक समाज नशामुक्त न हो जाए और हर युवा बदलाव का वाहक बने।” उनका सपना है – एक ऐसा भारत, जहाँ हर युवा नशा मुक्त होकर राष्ट्र निर्माण में भागीदार बने।